लखनऊ। कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए 25 मार्च से देश भर मे लागू किए गए लाक डाउन का आज 34वां दिन है कोरोना वायरस के मरीज़ो की संख्या मे अगर इज़ाफा न हुआ और सब कुछ ठीक रहा तो मुमकिन है कि 6 दिन बाद यानि 3 मई को देशवासियो को लाक डाउन से निजात मिल जाए । भले ही 3 मई से लाक डाउन को समाप्त कर दिया जाए लेकिन कोविड 19 कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सामाजिक दूरी बहोत ज़रूरी है इस लिए धारा 144 लागू रहेगी धारा 144 के बीच एक साथ एक जगह पर 4 लोगो के एकत्र होने पर प्रतिबन्ध रहता है । विश्व व्यापी आतंक का पर्याय बने कारोना वायरस को हराने के लिए सिर्फ दो ही रास्ते बताए गए है एक सामाजिक दूरी और दूसरा साफ सफाई क्यूकि कोरोना वायरस किसी एक धर्म या किसी एक जाति विशेष के लिए नही है इस लिए ये ज़रूरी है कि देश के सभी नागरिक खुद ही कोरोना वायरस को हराने के लिए सरकार द्वारा जारी की गई गाईड लाईन पर चले सरकार अपना काम करे और जनता को भी अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने की मौजूदा समय मे कुछ ज़्यादा ही आवश्यकता है ।
लाक डाउन के 34वे दिन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़को का वही हाल था जो पहले था पुराने लखनऊ मे क्यंूकि मुस्लिम आबादी ज़्यादा है इस लिए मुस्लिम आबादी होने की वजह से यहंा रमज़ान के मददे नज़र भी कुछ ज़्यादा ही भीड़ रहती थी लेकिन कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू किए गए लाक डाउन का पालन यहां भी पूरी तरह से दिख रहा है कुछ दुकाने खुली रही जहा रोज़ादारो ने सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करते हुए ज़रूरत का सामान भी खरीदा।
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लाक डाउन की भेंट चढ़ गई रंग बिरंगी टोपियों की दुकाने
34 दिनो से चल रहे लाक डाउन के बीच पवित्र रमज़ान के महीने की रौनक भी भेंट चढ़ गई। रमज़ान शुरू होने से पहले ही नख्खास और मोलवींगज मे रंग बिरंगी टोपियों की दुकाने सज जाती थी लेकिन आज तीसरा रोज़ा भी पूरा हो गया लेकिन नख्खास और मोलवींगज की सूनी सड़को को देख कर ये कहा ही नही जा सकता है कि ये वही सड़कें है जहां रमज़ान से पहले रंग बिरंगी टोपियो की दुकानो से बाज़ार गुलज़ार रहता था ।
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सहरी के लच्छे ढूढ रहे है रोज़ादार
रमज़ान के महीने मे रोज़ा रखने से पहले रोज़ादार रात मे सहरी करते है और सहरी मे रोज़ादार विशेष कर मैदे से बनाए गए लच्छे दूध मे डाल कर खाते थे लेकिन इस बार लाक डाउन की वजह से बाज़ार बन्द है और लच्छे की दुकाने रोज़ादारो को ढूढने से भी नही मिल रहीं है। पुराने लखनऊ की बाज़ारो में सजने वाली लच्छे की दुकाने नदारत है लेकिन कुछ परचून की दुकानो पर लच्छे बिक भी रहे है तो गरीबो की पकड़से दूर है क्यंूकि आम दिनो मे अच्छे किस्म के जो लच्छे 120 रूपए किलो बिकते थे आज उन लच्छो की कीमत 2 सौ से ढाई सौ रूपए प्रति किलो है। लाक डाउन की वजह से वैसे ही गरीब तबके से ताल्लुक रखने वाले लोगो के पास पैसो की कमी है उस पर चन्द दुकानो पर मिल रहे महगे लच्छे खरीदने के लिए गरीबो की जेबे इजाज़त नही दे रही है।
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मुशकिल से मिल रही है खजूर
रमज़ान के महीने मे रोज़दारो के लिए अफतारी का सबसे खास आईटम यानि खजूर इस बार रोज़दारो को बहोत मुशकिल से मिल रही है। आम दिनो मे रमज़ान से पहले बाज़ारो मे तरह तरह की खजूरो के ठेले सज जाते थे रोज़दार रमज़ान से पहले ही अफतारी के लिए तरह तरह की खजूरे खरीदा करते थे लेकिन इस रमज़ान मे लाक डाउन होने की वजह से दूसरे प्रदेशों से तमाम किस्मो की खजूरे मंडियो मे पहुॅची ही नही है। हालाकि रोज़दारो को खजूरो से पूरी तरह से वंचित नही होना पड़ रहा है रोज़ादारो को खजूर तो मिल रही है लेकिन मंहगी भी है और रोज़ादार खजूर की दुकानो पर जाकर तरह तरह की खजूरो मे से खजूर की किस्म का चुनाव भी नही कर पा रहे है क्यूकि सड़को पर लगे खजूर के इक्का दुक्का ठेलो पर एक ही किस्म की खजूरे बिक रही है।
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निहारी कुल्चो से वंचिंत है रोज़दार
इतिहास मे शायद ऐसा पहली बार ही हुआ है जब रोज़ादारो को लखनऊ के मशहूर निहारी कुल्चो के स्वाद से वंचित रहना पड़ रहा है। रमज़ान की चाॅद रात से ईद की चाॅद रात तक पुराने लखनऊ के दर्जनो कुल्चे निहारी के होटल रात भर ग्राहको की भीड़ से गुजलज़ार रहते थे । आम दिनो के मुकाबले रमज़ान के महीने मे कुलचे निहारी की मांग कई गुना बढ़ जाति थी लेकिन कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू किए गए लाक डाउन की भेंट इस बार कुलचे निहारी का स्वाद भी चढ़ गया। कुलचे निहारी के लिए पुराने लखनऊ के रहीम और और मुबीन के होटलो पर पिछले 34 दिनो से ताले पड़े हुए है। लज़ीज़ बिरयानी के लिए दूर दूर तक मशहूर इदरीस की बिरयानी से भी इस बार रोज़ादार वंचित है पाटा नाला पुलिस चाौकी के सामने बने इदरीस के होटल की रौनक भी रमज़ान के महीने मे कई गुना बढ़ जाती थी रोज़ अफतार के बाद से सहरी तक इस होटल पर हज़ारो लोग कुल्चे निहारी और लज़ीज़ बिरयानी का मज़ा लेते थे लेकिन इस बार इदरीस बिरयानी के होटल पर 34 दिनो से लाक डाउन का लाक लगा हुआ है। निहारी कुल्चे और लज़ीज़ बिरयानी के साथ ही टुन्डे के कबाब पराठे और शीरमाल का स्वाद तो छोड़ दीजिए इस बार कबाब पराठे औरशीरमाल की सुगन्ध भी लाक डाउन के लााक मे कैद हो गई है। विश्व विख्यात लखनऊ के टुन्डे कबाबी की दुकान पर ताले लगे हुए है आम तौर पर टुन्डे कबाबी की दुकान पर पर दिन भर भीड़ रहती है और रमज़ान के महीने मे टुन्डे कबाबी की दुकान पर अगर कबाब पराठे लेने हो तो ग्रकत्रहक को काफी देर तक इन्तीज़ार करना पड़ता था लेकिन इस रमज़ान मे सबकुछ लाक डाउन के लाक मे लाक हो गया न कुल्चे नहारी न बिरयानी और न ही कबाब पराठे शीरमाल का स्वाद सब कुछ इस बार रोज़ादारो के लिए सिर्फ सुनी सुनाई बाते सी लगने लगी है।